Why is the Kaveri river so famous in South India? दक्षिण भारत की कावेरी? क्यों इसे दक्षिण की गंगा कहते हैं ?
कावेरी नदी को “दक्षिण भारत की गंगा” कहा जाता है। यह भारत की प्राचीन व प्रमुख नदियों में से एक है। यह नदी मुख्य रूप से दक्षिण भारत के कर्नाटक व तमिलनाडु राज्य में बहती है। साथ ही यह केरल व पुडुचेरी के कुछ भागों से भी होकर गुजरती है। यह कर्नाटक के कुर्ग से निकलती है तथा इसका उद्गम स्थल पश्चिमी घाट का ब्रह्मगिरी पर्वत माना जाता है। तमिल में इस नदी को ‘काविरी’ व ‘पोनी’ कहा जाता है। यह नदी अपने सफर में लगभग 800 कि.मी. की दूरी तय करती है तथा दक्षिणी राज्यों के विभिन्न क्षेत्रों से प्रवाहित होते हुए अन्त में कावेरीपट्टनम के पास बंगाल की खाड़ी में जाकर सागर में मिल जाती है। कावेरी नदी का कुल क्षेत्रफल 81,000 वर्ग कि.मी. है। दक्षिण भारत में इस नदी के तट पर कई घाट, तीर्थस्थल व मंदिर बने हुए हैं।
पौराणिक महत्व
गंगा नदी की तरह ही दक्षिण में इस प्राचीन नदी को पूजनीय माना जाता है। जिसका प्रमुख कारण है नदी का पौराणिक महत्व विष्णु पुराण समेत कई हिन्दू पुराणों में इस नदी का उल्लेख मिलता है। यह नदी तीन स्थानों पर दो शाखाओं में बंटती है, जिससे वहां तीन द्वीप बनाए गए हैं। इन द्वीपों पर भगवान श्रीविष्णु के प्रसिद्ध मंदिर आदिगम, शिवसमुद्रम व श्रीरंगम स्थित हैं। वहीं भौगोलिक रूप से भी नदी के बेसिन को डेल्टा, मैसूर के पठार व पश्चिमी घाट में विभाजित किया गया है।
कावेरी नदी दक्षिण भारत के लिए किसी वरदान से कम नहीं है। नदी के तट पर लाखों लोग बसे हुए हैं, वहीं यह दक्षिण भारत के कई इलाकों में पेयजल व सिंचाई का प्रमुख स्त्रोत होने के साथ ही आर्थिक मजबूती भी प्रदान करती है, जिसका प्रमुख कारण नदी के किनारों पर बसे विभिन्न उद्योग व कारखाने हैं। जीवनरूपी जल प्रदान करने के साथ ही दक्षिणी प्रान्तों की अर्थव्यवस्था को सशक्त करने में प्रमुख भूमिका निभाने के कारण इस नदी को दक्षिण भारत की गंगा कहा जाता है।
सहायक नदियां
कावेरी नदी दक्षिणी इलाके के प्रमुख जलस्त्रोतों से एक है। इसके सफर में दक्षिण भारत की कई छोटी-बड़ी नदियां इस नदी में आकर मिल जाती हैं। नदी के बाएं तथा दाहिने छोर से विभिन्न क्षेत्रीय नदियां इस पवित्र नदी में विलीन होकर इसके स्वरूप को धारण करती हैं।
नदी की बांयी दिशा से कब्बानी, भवानी, सुवर्णवती, नोयली व लक्ष्मणतीर्थ नदियां कावेरी नदी में आकर मिल जाती हैं। वहीं दाहिनी दिशा से बहते हुए नदी में मिलने वाली प्रमुख नदियां हेमावती, सिमसा, अर्कावती और हारांगी हैं। कावेरी नदी की लगभग 50 सहायक नदियां हैं। अपने उद्गम स्थल से कावेरी नदी अत्यन्त छोटी धारा के रूप में निकलती है, किन्तु जैसे-जैसे इसकी सहायक नदियां नदी में मिलती हैं, कावेरी नदी वृहद स्वरूप धारण करती जाती है।
प्रमुख बांध व जलप्रताप
वर्ष भर अपनी धाराओं से शीतल जल प्रवाहित करने वाली कावेरी नदी के किनारे कई जलप्रताप व बांध बने हुए हैं। प्रसिद्ध शिवसमुद्रम जलप्रताप भी इसी नदी पर बना हुआ है, जिसका प्रयोग बड़े पैमाने पर विद्युत निर्माण के लिए किया जाता है। इसके अलावा नदी पर तमिलनाडु में मेत्तुर व कर्नाटक में कृष्णराजसागर बांध बना हुआ है।
कावेरी जल विवाद
दक्षिण के राज्यों की जीवन रेखा कही जाने वाली कावेरी नदी का जल वर्षों से कर्नाटक और तमिलनाडु के बीच विवाद का विषय रहा है। दरअसल, पिछले 137 सालों से दोनों राज्यों के बीच नदी के जल के प्रयोग को लेकर विवाद चल रहा है। 1881 में सर्वप्रथम तत्कालीन मैसूर व मद्रास राज्य के शासकों द्वारा नदी को लेकर तनातनी हुई। जब मैसूर में कावेरी नदी पर बनाए जा रहे बांध का मद्रास राज्य ने विरोध किया था तब से इस मसले ने जो तूल पकड़ना शुरू किया, उसने आज विकराल रूप ले लिया है।
दरअसल कर्नाटक व तमिलनाडु के लाखों लोग नदी पर आश्रित हैं, जिसे लेकर दोनों राज्यों में तनाव की स्थिति बनी रहती है। इस विवाद का निर्णय करने के लिए 1990 में कावेरी जल विवाद ट्राइब्यूनल (CWDT) की स्थापना की गई थी। राज्यों में जल के वितरण को लेकर सुप्रीम कोर्ट व सीडब्ल्यूडीटी द्वारा कई बार अलग अलग निर्णय सुनाए गए, लेकिन हर निर्णय के बाद से विवाद और अधिक बढ़ता गया। जिसके बाद 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर अपना फैसला सुनाते हुए नदी के जल के आवंटन में तमिलनाडु की हिस्सेदारी कम कर दी, जिससे तमिलनाडु के हिस्सा 192 से 177.25 टीएमसी फीट हो गया. वहीं कर्नाटक का हिस्सा 14.75 टीएसी फीट बढ़ा दिया गया।
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