My painful Memories in the lockdown of Covid-19 in 2020
लॉकडाउन, जिसके बारे में न पहले कभी सुना था और न कभी सोचा था कि जीवन में एक पल ऐसा भी आएगा जब हम सभी को एक दूसरे से दूर अपने-अपने घरों में बंद होना पड़ेगा। 22 मार्च 2020 का वो दिन जब देश के प्रधानमंत्री ने देश में पहली बार 14 घंटो के लिए जनता कर्फ्यू का ऐलान किया, उन 14 घंटो को गुजारना ही लोगों के लिए मुश्किलों से भरा रहा । फिर 25 मार्च से लगातार 4 महीनों तक लॉकडाउन चलता रहा । वक्त रहते लिया गया यह कदम, वैसे तो देश के जनता की भलाई और इस महामारी को फ़ैलने से रोकने के लिए ही थी पर एक वर्ग हमारे देश का ऐसा भी था जिसने इन दिनों में जिंदगी जीने के लिए मौत को हर पल अपने करीब देखा । इस देश का हर वर्ग अमीर या ग़रीब तकलीफ़ हर किसी ने झेला और आज भी झेल रहे हैं, कोई अपने परिवार से दूर कहीं फंसा है तो कोई आख़री बार अपने लोगों को देखने को तरस रहा है।
तकलीफ़ तो हमें भी बहुत हुई पर उस परमात्मा का सुक्रिया अदा करती हूँ कि कम से कम हमारे सर पे छत तो है, वाकई हमसब बहुत सौभाग्यशाली हैं जिनको ऊपर वाले ने रहमत बक्शा है। रूह तो तब कांपी थी जब उन छोटे-छोटे बच्चों को भूखे-प्यासे रास्तों पर कई-कई मील चलते देखा था , न पैरों में चप्पल न खाने को रोटी थी। उन्हें बीमारी का उतना डर नहीं था जितना भूख से जान गवांने का था, तभी तो वे कहते थे “बीमारी से बाद में मरेंगें साहब भूख से पहले मर जायेंगे।”
कोरोना वायरस ने सिर्फ हमारे देश में ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में तबाही मचा रखी है। हमारे देश में योद्धाओं की कमी नहीं है, हर गली हर मुहल्ले में सैकड़ों कोरोना warriors थे जिन्होंने अपने सुविधा से जरूरत मंदों की इस मुश्किल घड़ी में मदद की ।
देश ने 4 महीनों तक lockdown का लंबा सफ़र तय किया है। जंग अभी भी जारी है, विश्वाश है आने वाले कुछ वक्त में सब कुछ पहले की तरह हो जाये, तब तक
Take Precautions, Stay Home Stay Safe
Courtesy: Sanchi Kashyap