आस्था विश्वास और विज्ञान की दृष्टि से छठ पूजा को समझें
“कांच ही बांस के बहंगिया, बहँगी लचकत जाय” आप सभी ने ये गीत जरूर सुना होगा, ये गीत सुनते ही मन आनंदमयी हो उठता है और मन में सकारात्मक तरंगे दौड़ने लगती है| छठ पूजा के गीतों को सुनकर ये बात सहज हो जाती है की यह त्यौहार बहुत सारी कहानियों को अपने अंदर समाते हुए है| यह पर्व बहुत ही शुद्धता और पवित्रता के साथ बड़े ही धूम-धाम से मनाया जाता है|
छठ एक पर्व ही नहीं बल्कि महापर्व है जो 4 दिनों तक चलता है। कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथी से छठ पूजा शुरू हो जाती है। जिसमें पहले दिन नहाय-खाय, दूसरे दिन खरना ,तीसरे दिन निर्जला व्रत रहकर शाम के समय अस्त होते सूर्य को नदी या तालाब में खड़े रहकर अर्घ्य देते है और चौथे दिन उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देकर व्रत सम्पन्न किया जाता है।
इसकी शुरुआत को लेकर कई कहानियाँ मिलती हैं।एक कथा के अनुसार, महाभारत काल में जब पांडव अपना सारा राजपाट जुए में हार गए, तब द्रौपदी ने छठ व्रत किया था। जिससे उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण हुईं और पांडवों को राजपाट वापस मिल गया। इसके अलावा छठ महापर्व का उल्लेख रामायण काल में भी मिलता है। ऐसा माना जाता है कि छठ या सूर्य पूजा महाभारत काल से की जाती है। कहते हैं कि छठ पूजा की शुरुआत सूर्य पुत्र कर्ण ने की थी। मान्याताओं के अनुसार, वे प्रतिदिन घंटों कमर तक पानी में खड़े रहकर सूर्य को अर्घ्य देते थे। सूर्य की कृपा से ही वे महान योद्धा बने थे।
वैज्ञानिक दृष्टि से देखें तो षष्ठी के दिन विशेष खगोलिय परिवर्तन होता है। तब सूर्य की पराबैगनी किरणें असामान्य रूप से एकत्र होती हैं और इनके कुप्रभावों से बचने के लिए सूर्य की ऊषा और प्रत्यूषा के रहते जल में खड़े रहकर छठ व्रत किया जाता है।
छठ महापर्व में बहुत ही आस्था और विश्वास देखने को मिलता है| छठ मैया की अगाध महिमा के कारण ऐसी मान्यता रही है कि जिसने भी इस व्रत को आस्था श्रद्धा एवं पवित्रता के साथ किया उसे मनोवांछित फलों की प्राप्ति हुई इस पर्व के कठिन विधान और पवित्रता के कारण ही इसे घर की बड़ी बुजुर्ग महिलाएं करती हैं| श्रद्धालु अपनी आस्था लिए छठ मैया के पास आते हैं और अपनी मनोकामना पूर्ण करते हैं|
जय छठी मैया|